ईटीओ अशोक सुखीजा की हाईकोर्ट में सुनवाई 28 नवंबर को

अक्टूबर 2020 में दर्ज मामले में लगाई है जमानत याचिका
 

inderjeet adhikari,sirsa: आबकारी एवं कराधान विभाग सिरसा के तत्कालीन ईटीओ अशोक सुखीजा की जमानत याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में मंगलवार 28 नवंबर को सुनवाई होगी। मामले में बीती 31 अक्टूबर को सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 28 नवंबर की तिथि तय की है।     

फर्जी फर्मों के संचालकों से मिलीभगत कर सरकारी राजस्व को चपत लगाने के आरोपी ईटीओ सुखीजा की ओर से अपने बचाव में दलील दी गई कि वह वर्ष 2018 में सेवानिवृत्त हो चुका है, जबकि उसके खिलाफ वर्ष 2020 में मामला दर्ज किया गया है।

ईटीओ सुखीजा की ओर से तत्कालीन डीईटीसी जीसी चौधरी की जमानत का हवाला देते हुए अपने लिए भी राहत की मांग की है। मामले में अब 28 नंवबर को पुन: सुनवाई होगी।

उल्लेखनीय है कि सिरसा पुलिस की एसआईटी ने ईटीओ अशोक सुखीजा को तत्कालीन डीईटीसी जीसी चौधरी के साथ 29 मई 2023 को गिरफ्तार किया था। सुखीजा पिछले 6 माह से जेल में कैद है।

वर्णनीय है कि ईटीओ अशोक सुखीजा की ओर से पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में गत 16 अक्टूबर 2023 को जमानत के लिए याचिका दाखिल की थी। जिस पर 30 अक्टूबर को सुनवाई होनी थी लेकिन मामले में सुनवाई के लिए 31 अक्टूबर का दिन निर्धारित किया गया था। फिर अगली तारीख दी गई।      

तत्कालीन ईटीओ अशोक सुखीजा की ओर से थाना शहर सिरसा द्वारा 24 अक्टूबर 2020 को दर्ज एफआइआर नंबर 657 मामले में जमानत का आग्रह किया गया है।

मैसर्ज जेसी इंटरप्राइजिज को 29 लाख का दिया रिफंड

थाना शहर सिरसा पुलिस ने आबकारी एवं कराधान विभाग सिरसा के तत्कालीन ईटीओ चाप सिंह की शिकायत पर 24 अक्टूबर 2020 को मामला दर्ज किया गया था। शिकायत में बताया गया कि गांव शहीदंावाली जिला सिरसा निवासी मदन लाल पुत्र सुंदरराम द्वारा मैसर्ज जेसी इंटरप्राइजिज फर्म बनाई गई। इस फर्म द्वारा वर्ष 2011-12 में 29 लाख 29 हजार 35 रुपये का बोगस रिफंड हासिल किया। 

निगरानी करने की बजाए लुटाया खजाना

कराधान विभाग के ईटीओ के नाते फर्मों की तस्दीक करने की अहम जिम्मेवारी होती है। इसके साथ ही फर्म द्वारा रिफंड के क्लेम की पड़ताल करनी होती है। इसके बाद ईटीओ द्वारा प्रोविजनल असेसमेंट तैयार की जाती है, जिसके आधार पर फर्म को रिफंड प्राप्त होता है। नियमानुसार 5 लाख तक के रिफंड के लिए केस डीईटीसी के समक्ष और इससे अधिक के लिए जेईटीसी के समक्ष पेश करना होता है। लेकिन विभागीय अधिकारियों ने फर्जी फर्मों को ही करोड़ों रुपये का रिफंड कर दिया। जिन फर्मों का कोई अस्तित्व ही नहीं था, उन्हें भी रिफंड किया।